पैसों के आगे दम तोड़ रहा साहित्य

“एक ज़माना था जब लेखकों का मान था सम्मान था, रचनाओं का मोल था, बिक रहा है आज साहित्य कोड़ियों के दाम ये कैसा इंसानी दिमाग का खेल था” आज के ज़माने में कुछ भी नामुमकिन नहीं “पैसा फैंक तमाशा देख” वाली उक्ति हर जगह साबित हो रही है। अक्सर ऐसा कहा जाता है कि … Continue reading पैसों के आगे दम तोड़ रहा साहित्य